ईश्वर हमारा चढावा गृहण करते है कि नही

ईश्वर हमारा चढावा गृहण करते है कि नही  by rajjansuvidha.in

 ईश्वर हमारा चढावा गृहण करते है कि नही।भगवान प्रसाद खाते है या नही         

आज का परिवेश ,प्राचीन काल के परिवेश से बहुत ही अलग है
प्राचीन काल में बहुत सी भ्रांतियां फैली हुई थी जिन्हें दूर करने के लिए वर्तमान काल में लोग प्रयास कर रहे हैं,

 फिर भी बहुत सी ऐसी भ्रांतियां हैं, बहुत से ऐसे तथ्य हैं जो सत्यता पर खरे उतरते हैं कुछ ऐसे तथ्य भी हैं जो सत्यता पर खरे नहीं उतरते हैं । इसी बात के चलते वर्तमान में बच्चों के मन में उत्पन्न हुए एक सवाल का जवाब ढूंढने के लिए हम 90 बरस के एक ज्ञानी व्यक्ति के पास गए , सभी उन्हे महात्मा जी कहते है।

ईश्वर हमारा चढावा गृहण करते है कि नही  Parbhu ki leela byrajjansuvidha.in

 उनसे हमने बच्चे के द्वारा किए गए सवाल का जवाब पूछा 

सवाल और जवाब इस प्रकार हैं ।
बच्चे का सवाल था
क्या भगवान हमारे द्वारा चढ़ाया गया भोग खाते हैं ?
यदि खाते हैं तू वह वस्तु समाप्त क्यों नहीं होती है या कम क्यों नहीं होती है ?
यदि भगवान हमारे द्वारा चढ़ाई गई भोग को नहीं खाते हैं
तो भोग लगाने से क्या लाभ है 
 ?
इस प्रश्न का जवाब उस ज्ञानी व्यक्ति ने कुछ इस प्रकार दिया
उन्होंने कहा आप एक हनुमान चालीसा की पुस्तक लेकर आईए
हम हनुमान चालीसा की पुस्तक लाए और सम्मानित बुजुर्ग व्यक्ति को दिया
उन्होंने उस पुस्तक को खोला और
हनुमान चालीसा की प्रथम चौपाई याद करने के लिए कहा
इस चौपाई को पूरी तरीके से आप याद कर लीजिए कंठष्थ  कर लीजिए
और फिर कभी मत भूलिए ।

        उन महात्मा जी  द्वारा बताए गए उस मार्ग को हमने अपनाया
और हनुमान चालीसा की प्रथम चौपाई “श्री गुरु चरण सरोज रज निज मन मुकुर सुधार।
वर्णों रघुबर बिमल जसु जो दायक फल चार”।।
 को हमने याद कर लिया कुछ देर के बाद हमने सम्मानित महात्मा जी से कहा ,यह चौपाई हमने याद कर लिया है उन्होंने कहा सुनाइए ,हमने वह चौपाई  सुना दी ।

वह उसे सुनकर नकारात्मक जवाब देकर सर हिला कर दिया
फिर हमने कहा हे महात्मा जी हमने इस चौपाई को याद कर लिया है  अब हम इस चौपाई को कभी नहीं भूलेंगे फिर हमने वह चौपाई महात्मा जी  को सुना दी फिर भी वह संतुष्ट नहीं हुए ।

    कुछ समय के बाद हमने फिर कहा ,  महात्मा जी  हमें यह पूरी तरीके से कंठस्थ हो गई है
 आप पुनः सुन लीजिए हमने उनके बिना किसी जवाब के वह चौपाई पुनः सुना दी ।

उसके बाद उन्होंने कहा की आपने हनुमान चालीसा की पुस्तक से यह चौपाई याद की है
जो कि आपके मन ,मस्तिष्क में विद्यमान है उसमें संग्रहित हो गई है ।
लेकिन हनुमान चालीसा की पुस्तक में वह चौपाई उसी जगह है उसी रूप में उतनी ही है
 उसमें किसी भी तरीके का कोई परिवर्तन नहीं हुआ है
 लेकिन आपने वह चौपाई अपने दिमाग में अपने मन में याद करके बैठा ली है ।

        90 बरस के महात्मा जी ने कहा हनुमान चालीसा में जो चौपाई है वह स्थूल रूप में है
और जो तुमने याद किया है वह सूक्ष्म रूप में तुम्हारे दिमाग में संग्रहीत हो गई है

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यह सुनकर हमें उस प्रश्न का उत्तर मिल गया जो हमने पूछा था कि हमारे द्वारा अर्पित किए गए भोग को भगवान ग्रहण करते हैं या नहीं ।

उन्होंने कहा भगवान भाव के भूखे हैं वह  दी हुई वस्तु को नहीं देखते हैं
वह यह देखते हैं कि कौन सा मानव उन्हें मन मस्तिष्क से याद करता है
और उन्हें कोई चीज समर्पित करता है

यह सब सुनकर हमने सीखा कि वास्तव में हम यह सोचते हैं कि हमने जो चढ़ावा चढ़ाया वह भगवान ने ग्रहण नहीं किया लेकिन वह उसे सूक्ष्म रूप में ग्रहण कर लेते हैं और उस वस्तु में किसी भी चीज की कमी नहीं आती है ,किसी भी तरह की कमी नहीं आती है  जिसे हम बाद मे प्रसाद के रूप मे गृहण  करते है।  हमारे साथ प्रश्न करने वाले  बच्चों को भी उस प्रश्न का जवाब मिल गया ।

    दोस्तों यह कहानी आपको कैसी लगी कुछ न कुछ शिक्षा जरूर मिली होगी इस शिक्षा से हम अन्य विषयों पर भी विचार विमर्श कर सकते हैं और अपने मन मस्तिष्क को, मन की स्थिति को आज के परिवेश में और पुराने परिवेश में से तुलनात्मक रूप में तुलना करके हम सत्यता को परख सकते हैं और अपने जीवन में अपना सकते हैं इसे पढ़ कर के आप लोग ईश्वर के अस्तित्व के बारे में तर्क वितर्क करने वाले प्रश्नों से जरूर संतुष्ट हो गए होंगे

         इस तथ्य मे सच्चाई अवश्य छुपी हुई है। 

 

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                             खुश रहिए ,मस्त रहिए और हमेशा मुस्कराते रहिए ।

 

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