Punishment of mistake: मोटिवेशन और सच्चाई पर आधारित यह एक लघु कथा है जरसमे दिया गया Punishment दंड कुछ भी नहीं है लेकिन उसका निभाना कठिन है
Punishment of mistake l गलती का दंड।
Punishment of mistake: यह एक सत्य प्रसंग जिसमे महात्मा गाँधी की सेवा में लगे आत्मानाद से कुछ गलती हो जाती है और एक घटना घटती है Punishment of mistake का उदय होता है।
सेवाग्राम में गांधी जी के पास उनके अनुयाई आत्मानंद भाई रहते थे |
आत्मानंद गांधीजी के सभी काम करते थे
गांधीजी को किसी प्रकार का कष्ट न पहुंचे यह ध्यान हमेशा रखते थे
आत्मानंद गांधीजी को बापू ही कहते थे
एक दिन बापू का कमरा साफ करते समय उनसे तीन बंदरों वाली मूर्ति गिर कर टूट गई,
आत्मानंद भाई को बेहद कष्ट हुआ और वह सोच में पड़ गए कि बापू को जब अपनी प्रिय मूर्ति टूटने का पता चलेगा
तो उन्हें बहुत दुख पहुंचेगा और मुझ पर बहुत बिगड़ेंगे,
उनके मन में तूफान सा उठ खड़ा हुआ- और उनके मन आया की सच को भी छुपा लूं ,
और झूठ भी ना बोलूं पर यह कैसे संभव होगा?
आत्मानंद भाई के मन का जब यह तूफान थमा ही नहीं और सोचते सोचते वे बापू के पास जा पहुंचे
यह उन्हें पता ही नहीं चला कि वह गांधीजी के पास कैसे पहुंच गए
लेकिन जब उन्होंने बापू को सामने देखा तो वह सहमे सहमे से खड़े हो गए
बापू ने इसका कारण पूछा तो आत्मानंद ने धीरे से बोले, बापू जी वो ,
” बापू, मेरी असावधानी से आपकी तीन बंदरो वाली मूर्ति टूट गई है,

अब आप जो भी दंड देंगे, मुझे स्वीकार होगा”
बापू जी ने कहा दंड तो तुम्हे अवश्य मिलेगा
” दंड तो तुम्हें अवश्य दूंगा और ऐसा दंड punishment दूंगा जो कि तुम सारी जिंदगी याद रखोगे ,”
बापू ने कुछ गंभीरता से भरे शब्दों में कहा |
आत्मानंद भाई के मन में धुकधुकी होने लगी बापू ने उन्हें चिंतित मुद्रा में देखा तो वह बोले,
तो सुनो, अपना दंड punishment- “सारी जिंदगी सच बोलने की हिम्मत मत छोड़ना |”
यह एक छोटी सी मोरल कहानी है