Gubbare wala ramu moral story एक शिक्षाप्रद कहानी

Gubbare wala ramu एक साधारण कहानी है, जो अपने छोटे से काम से न केवल अपनी आजीविका कमाता है, बल्कि अपने व्यवहार और दयालुता से लोगों के दिलों में जगह बनाता है। यह कहानी बच्चों और बड़ों दोनों के लिए प्रेरणादायक है, जो मेहनत, ईमानदारी और दयालुता का महत्व सिखाती है।

Gubbare wala ramu

एक छोटे से गांव में, जिसका नाम था सूरजपुर, उस गाँव में एक गुब्बारे वाला रहता था। उसका नाम रामू था। रामू की उम्र करीब 40 साल थी, और वह हर दिन अपने रंग-बिरंगे सतरंगी गुब्बारों की टोकरी लेकर गांव के बाजार में जाता था। उसके गुब्बारे इतने सुंदर और आकर्षक थे कि बच्चे दूर से ही उसकी ओर खिंचे चले आते। लाल, नीले, पीले, हरे और गुलाबी रंगों के गुब्बारे हवा में लहराते हुए बच्चों को खुशी दे देते थे।

रामू का जीवन आसान नहीं था। वह एक गरीब परिवार से था और उसकी कमाई का एकमात्र स्रोत गुब्बारे बेचना था। फिर भी, वह हमेशा मुस्कुराता रहता। उसकी मुस्कान इतनी सच्ची थी कि लोग उसे देखकर अपने दुख भूल जाते। रामू का मानना था कि खुशी बांटने से ही जीवन में सच्चा सुख मिलता है।

रामू और मोहनलाल

हर सुबह, रामू सूरज उगने से पहले उठता। वह अपने छोटे से घर में गुब्बारों को तैयार करता, उन्हें हवा से भरता और अपनी टोकरी में सजाता। फिर वह बाजार की ओर निकल पड़ता। बाजार में उसका एक खास कोना था, जहां वह अपनी टोकरी रखता और बच्चों का इंतजार करता। बच्चे आते, गुब्बारे देखते, और अपनी पसंद का गुब्बारा चुनते। रामू हर बच्चे से प्यार से बात करता और कभी-कभी गरीब बच्चों को मुफ्त में गुब्बारे दे देता।

रामू की यह आदत गांव के कुछ लोगों को पसंद नहीं थी। बाजार में एक दुकानदार, जिसका नाम मोहनलाल था, हमेशा रामू से जलता था। मोहनलाल की मिठाई की दुकान थी, और वह चाहता था कि बच्चे उसके पास मिठाई खरीदने आएं, न कि रामू के गुब्बारे खरीदें। वह अक्सर रामू को ताने मारता और कहता, रामू, तू इन गुब्बारों से क्या कमाएगा? ये तो हवा के साथ उड़ जाते हैं। मेरी मिठाइयां देख, कितनी स्वादिष्ट हैं!

रामू बस मुस्कुराकर जवाब देता, मोहनलाल जी, मेरे गुब्बारे बच्चों के चेहरों पर मुस्कान लाते हैं। यह मेरे लिए सबसे बड़ी कमाई है।

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एक अनोखा दिन

एक दिन, गांव में एक बड़ा मेला लगा। मेला सूरजपुर के लिए साल का सबसे बड़ा आयोजन था। लोग दूर-दूर से मेले में आते थे। रामू के लिए यह दिन बहुत खास था, क्योंकि मेले में वह ढेर सारे गुब्बारे बेच सकता था। उसने उस दिन और भी मेहनत की। उसने रात भर जागकर खास तरह के गुब्बारे बनाए, जिन पर छोटे-छोटे चित्र और संदेश लिखे थे। कुछ गुब्बारों पर खुश रहो लिखा था, तो कुछ पर प्यार बांटो।

मेले में रामू की टोकरी सबसे आकर्षक लग रही थी। बच्चे और बड़ों, दोनों को उसके गुब्बारे बहुत पसंद आए। उस दिन उसने बहुत सारे गुब्बारे बेचे, लेकिन उसने यह भी सुनिश्चित किया कि कोई भी बच्चा खाली हाथ न जाए। जिन बच्चों के पास पैसे नहीं थे, उन्हें उसने मुफ्त में गुब्बारे दिए।

उसी मेले में एक छोटी सी लड़की आयी थी, जिसका नाम रानी था। रानी बहुत गरीब थी और उसके माता-पिता मेले में मजदूरी करने आए थे। रानी रामू के गुब्बारों को दूर से देख रही थी, लेकिन उसके पास उन्हें खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। रामू ने रानी की उदास आंखें देखीं और उसे पास बुलाया। उसने रानी को एक सुंदर गुलाबी गुब्बारा दिया और कहा, यह तुम्हारे लिए है। इसे ले जाओ और हमेशा मुस्कुराते रहो।

रानी की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। उसने रामू को धन्यवाद कहा और गुब्बारा लेकर खुशी-खुशी चली गई।

मोहनलाल की जलन

मोहनलाल ने यह सब देखा और उसकी जलन और बढ़ गई। उसने सोचा कि रामू की इस दयालुता की वजह से लोग उसकी दुकान पर कम आ रहे हैं। उसने रामू को सबक सिखाने की ठान ली। अगले दिन, उसने बाजार में अफवाह फैलाई कि रामू के गुब्बारे खराब हैं और जल्दी फट जाते हैं। उसने कुछ लोगों को भड़काया कि वे रामू से सवाल करें।

जब रामू अगले दिन बाजार आया, तो कुछ लोग उससे बहस करने लगे। उन्होंने कहा, रामू, हमने सुना है कि तुम खराब गुब्बारे बेचते हो। क्या यह सच है? रामू ने शांति से जवाब दिया, मेरे गुब्बारे मेहनत और प्यार से बनाए गए हैं। अगर कोई गुब्बारा खराब हो, तो मैं उसे मुफ्त में बदल दूंगा।

रामू की ईमानदारी और सादगी ने लोगों का दिल जीत लिया। जो लोग मोहनलाल की बातों में आ गए थे, वे भी अब रामू पर भरोसा करने लगे। मोहनलाल का यह दांव उल्टा पड़ गया।

रामू की दयालुता का इनाम

कुछ दिन बाद, गांव में एक बड़ा उत्सव होने वाला था। इस बार गांव के सबसे अमीर सेठ, जिनका नाम रघुनाथ था, उत्सव का आयोजन कर रहे थे। रघुनाथ ने सुना था कि रामू के गुब्बारे बच्चों को बहुत पसंद आते हैं। उन्होंने रामू को बुलाया और कहा, रामू, मैं चाहता हूं कि तुम इस उत्सव के लिए खास गुब्बारे बनाओ। मैं तुम्हें अच्छी कीमत दूंगा।

रामू ने इस मौके को स्वीकार किया और दिन-रात मेहनत करके खास गुब्बारे बनाए। उसने हर गुब्बारे पर एक छोटा सा संदेश लिखा, जो लोगों को प्रेरित करता था। उत्सव के दिन, जब लोग रामू के गुब्बारे देखने आए, तो वे उसकी कला और मेहनत से दंग रह गए। रघुनाथ ने रामू की तारीफ की और उसे एक बड़ा इनाम दिया।

इसके अलावा, रानी, वही छोटी लड़की, जिसे रामू ने मुफ्त में गुब्बारा दिया था, अब अपने स्कूल में एक नाटक में हिस्सा ले रही थी। उसने अपने नाटक में रामू की दयालुता की कहानी सुनाई। यह नाटक इतना प्रभावशाली था कि पूरे गांव में रामू की तारीफ होने लगी।

नैतिक शिक्षा

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि मेहनत, ईमानदारी और दयालुता हमेशा फल देती है। रामू ने अपने छोटे से काम को पूरे दिल से किया और दूसरों की खुशी को अपने से ऊपर रखा। उसकी यह अच्छाई न केवल उसे सम्मान दिलाई, बल्कि गांव के लोगों के लिए एक मिसाल बन गई।

हमें भी अपने जीवन में रामू की तरह बनना चाहिए। चाहे हमारा काम कितना भी छोटा क्यों न हो, अगर हम उसे पूरी मेहनत और सच्चाई से करते हैं, तो वह हमें जरूर सफलता दिलाएगा। इसके अलावा, दूसरों की मदद करने और उनकी खुशी में हिस्सा लेने से जीवन और भी सुंदर हो जाता है।

निष्कर्ष

गुब्बारे वाला रामू एक साधारण इंसान था, लेकिन उसकी असाधारण सोच और दयालुता ने उसे गांव का हीरो बना दिया। उसकी कहानी हमें सिखाती है कि सच्चाई और अच्छाई का रास्ता मुश्किल हो सकता है, लेकिन वह हमेशा सही होता है।

यह कहानी बच्चों और बड़ों दोनों के लिए एक प्रेरणा है। अगर हम भी अपने जीवन में मेहनत और दयालुता को अपनाएं, तो हम न केवल अपने लिए, बल्कि दूसरों के लिए भी खुशी का कारण बन सकते हैं।

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