जब दो व्यक्ति झगड़ते What is Truth

 What is Truth सत्य क्या है? जब दो व्यक्ति झगड़ते हैं, तो अधिकतर वे दोनों ही जानते हैं, कि “कौन न्याय पक्ष में है, और कौन अन्याय कर रहा है?”

What is Truth सत्य क्या है? जब दो व्यक्ति झगड़ते हैं, तो अधिकतर वे दोनों ही जानते हैं, कि "कौन न्याय पक्ष में है, और कौन अन्याय कर रहा है?"

जब दो व्यक्ति झगड़ते है वो जानते है What is Truth ?


 What is Truth सत्य क्या है?: जब दो व्यक्ति झगड़ते हैं, तो अधिकतर वे दोनों ही जानते हैं, कि “कौन न्याय पक्ष में है, और कौन अन्याय कर रहा है?”

        
फिर भी वे लोग लंबे समय तक लड़ाई झगड़ा करते हैं। इस का कारण यह है, कि “वे समझते हैं, कि “हमारी चालाकी और अन्याय को कौन समझता है? कोई नहीं समझता। हम दूसरों को धोखा दे देंगे, किसी पर अन्याय करके, उसका धन संपत्ति छीन लेंगे और मौज कर लेंगे।” इस ग़लत सोच के कारण वे लोग लंबे समय तक परिवार समाज और न्यायालय आदि में भी झगड़ते रहते हैं।

           
वे लोग ऊपर से दिखावा अवश्य करते हैं, कि “हम बड़े सच्चे हैं, हम ईश्वर के भक्त हैं, हम सत्यवादी हैं, हम न्यायप्रिय हैं।” यह सब उनका दिखावा है क्योंकि वे दोनों ही जानते हैं, कि “सत्य क्या है, न्याय क्या है, कौन न्याय की बात कर रहा है, और कौन अन्याय कर रहा है?”  What is Truth सत्य क्या है?

           
यदि झगड़ने वाले वे दोनों व्यक्ति, अथवा अन्याय करने वाला व्यक्ति, ईश्वर को तथा उसकी न्याय व्यवस्था को ठीक-ठीक जानते होते और ठीक-ठीक समझते होते, तो वे झगड़ा नहीं करते या झगड़ा होने पर सत्य और न्याय को तुरंत स्वीकार करके झगड़ा शीघ्र
ही निपटा देते। परन्तु अधिकतर उनकी सोच यह रहती है, कि “हम परिवार में, समाज में एक दूसरे को मूर्ख बना लेंगे।
न्यायालय में न्यायाधीश महोदय को भी धोखा दे कर मूर्ख बना लेंगे, तथा न्यायाधीश महोदय की भी परीक्षा ले लेंगे, कि देखें,
वे कैसे और क्या न्याय करते हैं? कहां तक सत्य को समझ पाते हैं?” What is Truth सत्य क्या है?

          
झगड़ने वाले उन दोनों में से, जो अन्यायकारी व्यक्ति होता है, वही अधिकतर ऐसा सोचता है, कि “देखें ये न्यायाधीश महोदय मेरी गलतियां पकड़ पाते हैं, या नहीं? यदि वे मेरी गलतियों को नहीं पकड़ पाए, तो मैं जीत जाऊंगा। अन्याय करके भी मैं मौज करूंगा। और यदि न्यायधीश महोदय ने मेरी गलतियां पकड़ ली, तो भी रिश्वत आदि देकर छूटने की कोशिश करूंगा। यदि बच गया, छूट गया, तो मेरी मौज होगी। अन्यथा थोड़ा बहुत दंड मिलेगा भी, तो देखा जाएगा। जो भी होगा, तब का तब देख लेंगे, अभी तो मौज कर लूं।” What is Truth सत्य क्या है?

        
ऐसा सोच कर वह अन्यायकारी व्यक्ति लंबे समय तक भी न्यायालय में लड़ाई करता रहता है। परंतु वह अन्यायकारी व्यक्ति यह नहीं जानता, कि “ईश्वर तो हम दोनों व्यक्तियों की सच्चाई को जानता ही है। यदि न्यायाधीश महोदय मेरे अन्याय, चालाकी, धोखाधड़ी आदि को नहीं भी जान पाए, तो भी अंतिम निर्णय तो ईश्वर के न्यायालय में ही होगा। वहां तो मैं ईश्वर को धोखा नहीं दे पाऊंगा, और न ही मैं दंड से नहीं बच पाऊंगा। इसलिए न्यायाधीश महोदय को धोखा देने से कोई लाभ नहीं है।” What is Truth सत्य क्या है?

       
यदि वह अन्यायकारी व्यक्ति इतना जानता समझता होता, तो झगड़ा नहीं करता। न्यायालय में लंबा केस भी नहीं चलाता। “वह सत्य को स्वीकार करके अपना दंड भोग कर शीघ्र ही उस झगड़े को समाप्त कर देता।” What is Truth सत्य क्या है?

       
सबको स्मरण रहे, कि “ईश्वर सबसे बड़ा न्यायाधीश है। वह सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान तथा सब घटनाओं का सबसे अंतिम न्यायाधीश है। उसको धोखा देना असंभव है। क्योंकि वह सर्वत्र व्यापक और चेतन = सर्वज्ञ है। वह सब घटनाओं को स्वयं देखता है। स्वयं ही सबका साक्षी है। सर्वज्ञ होने से उसे कभी भ्रांति भी नहीं होती, और कोई संशय भी नहीं होता। वह सर्वथा निष्पक्ष है। इस कारण से वह सदा सबके साथ ठीक ठीक न्याय ही करता है। कभी भी किसी पर अन्याय नहीं करता।” What is Truth सत्य क्या है?

        “इसलिए ईश्वर को साक्षी मानकर अपना जीवन जीएं। दूसरों पर अन्याय न करें। अन्यथा ईश्वर के न्यायालय में, न्यायकारी
एवं अन्यायकारी सब लोगों का ठीक ठीक न्याय हो जाएगा।” “और तब ईश्वर अन्यायकारी लोगों को इस जन्म में चिंता तनाव भय शंका इत्यादि में डालकर जीवन भर तो दुखी करेगा ही, साथ ही साथ अगले जन्मों में भी सूअर कुत्ता हाथी बंदर शेर भेड़िया वृक्ष वनस्पति सांप बिच्छू भैंस बकरी आदि योनियों में दुख देकर खतरनाक दंड देगा।” What is Truth सत्य क्या है?

        “अतः बुद्धि एवं विवेक से काम लें। किसी के साथ भी लड़ाई झगड़ा न करें। किसी पर अन्याय न करें। सत्य, न्याय और सभ्यता से जीवन को जिएं, इसी में सबका कल्याण है।”

महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति

                                                                                                           — स्वामी विवेकानन्द।

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