जानिए Diwali का इतिहास, महत्व, पूजा विधि, सजावट और धन की देवी लक्ष्मी पूजन का सही तरीका इस दीपावली 2025 पर।
Diwali का महत्व, इतिहास और मनाने का तरीका
भारत त्योहारों का देश है और इनमें सबसे बड़ा, भव्य और उज्जवल त्योहार है दीवाली (Deepawali)। इसे “प्रकाश का पर्व” कहा जाता है क्योंकि इस दिन अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का उत्सव मनाया जाता है।
दीवाली सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं बल्कि यह सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक एकता का प्रतीक भी है। आइए जानते हैं दीवाली का इतिहास, महत्व, पूजा विधि और आधुनिक समय में इसे मनाने का तरीका।
Diwali का इतिहास
दीवाली से जुड़ी कई ऐतिहासिक और धार्मिक कथाएँ हैं। सबसे प्रसिद्ध कथा है भगवान राम की अयोध्या वापसी की।
कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीराम 14 वर्ष का वनवास पूरा करके रावण का वध कर अयोध्या लौटे, तब अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत में पूरे नगर को दीपों से सजाया। तभी से यह दिन दीपावली के रूप में मनाया जाने लगा।
दूसरी कथा माता लक्ष्मी से जुड़ी है। माना जाता है कि इसी दिन देवी लक्ष्मी समुद्र मंथन से प्रकट हुई थीं। इसलिए दीवाली को धन की देवी लक्ष्मी के स्वागत के रूप में भी मनाया जाता है।
कुछ स्थानों पर यह पर्व भगवान विष्णु और महालक्ष्मी के विवाह दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। जैन धर्म में यह दिन भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के रूप में पवित्र माना जाता है, जबकि सिख धर्म में यह गुरु हरगोविंद जी की जेल से मुक्ति दिवस (Bandi Chhor Divas) के रूप में प्रसिद्ध है।
Diwali का धार्मिक महत्व
दीवाली पाँच दिनों तक मनाई जाती है —
धनतेरस: इस दिन सोना, चांदी या बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है।
नरक चतुर्दशी (छोटी दीवाली): भगवान कृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध किया था।
दीपावली (मुख्य दिन): इस दिन माता लक्ष्मी, भगवान गणेश, कुबेर और सरस्वती की पूजा होती है।
गोवर्धन पूजा: भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की याद में।
भैया दूज: भाई-बहन के प्रेम का पर्व।
इन पाँचों दिनों का आध्यात्मिक संदेश है — “सकारात्मक ऊर्जा का स्वागत और नकारात्मकता का अंत।”
लक्ष्मी पूजन विधि
Diwali की रात अमावस्या तिथि पर लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व होता है।
पूजा से पहले घर की सफाई और सजावट की जाती है क्योंकि माना जाता है कि मां लक्ष्मी स्वच्छ और पवित्र स्थान पर ही प्रवेश करती हैं।
पूजा सामग्री:
दीपक, अगरबत्ती, फूल, चांदी या तांबे का सिक्का, मिठाई, कलश, चावल, हल्दी, सिंदूर आदि।
पूजा विधि:
सबसे पहले भगवान गणेश का आवाहन करें।
फिर माता लक्ष्मी की मूर्ति को स्थापित करें और जल से स्नान कराएं।
दीप जलाकर लक्ष्मी मंत्रों का जाप करें।
कुबेर जी और सरस्वती जी की भी पूजा करें।
अंत में आरती करें और प्रसाद वितरित करें।
लक्ष्मी पूजन के बाद लोग अपने घरों में दीपक जलाकर पूरे परिसर को रोशन करते हैं।
Diwali की तैयारी और सजावट
दीवाली से कई दिन पहले ही लोग अपने घरों की सफाई, पेंटिंग और सजावट शुरू कर देते हैं।
रंग-बिरंगे दीये, लाइट्स और तोरण से घरों को सजाया जाता है।
रंगोली बनाई जाती है जो सुख-समृद्धि का प्रतीक है।
लोग नए कपड़े पहनते हैं और एक-दूसरे को गिफ्ट्स और मिठाइयाँ देते हैं।
बाजारों में चारों ओर रौनक होती है और आर्थिक गतिविधियाँ तेज हो जाती हैं।
Eco-friendly Diwali का चलन भी बढ़ रहा है जिसमें मिट्टी के दीये, जैविक रंगोली और बिना प्रदूषण वाले पटाखे का उपयोग किया जाता है।
Diwali और सामाजिक एकता
दीवाली केवल हिंदू धर्म का नहीं बल्कि संपूर्ण समाज का त्योहार बन चुका है।
इस दिन लोग जाति, धर्म और वर्ग से ऊपर उठकर एक-दूसरे से मिलते हैं, उपहार बाँटते हैं और खुशियाँ साझा करते हैं।
यह त्योहार हमें सिखाता है कि अंधकार कभी स्थायी नहीं होता — प्रकाश सदैव विजयी रहता है।
आधुनिक समय में Diwali का रूप
आज की दीवाली पहले से अधिक रंगीन, डिजिटल और स्टाइलिश हो गई है।
लोग ऑनलाइन शॉपिंग, ई-गिफ्ट्स, और डिजिटल ग्रीटिंग्स भेजते हैं।
ऑफिसों में कॉर्पोरेट दीवाली पार्टीज़ आयोजित होती हैं।
टीवी और सोशल मीडिया पर दीवाली विज्ञापन अभियान चलाए जाते हैं।
हालांकि, दीवाली का मूल संदेश वही है — सच्चा सुख तभी है जब हमारे भीतर का दीप जलता रहे।
दीवाली का संदेश
दीवाली हमें याद दिलाती है कि हर इंसान के जीवन में अंधकार (संघर्ष, भय, दुख) आता है,
लेकिन जब हम प्रकाश (सत्य, कर्म, प्रेम, ईमानदारी) को अपनाते हैं,
तो जीवन में समृद्धि, शांति और सफलता निश्चित होती है।
निष्कर्ष
दीवाली का उत्सव सिर्फ दीप जलाने का नहीं बल्कि मन और आत्मा को उजाला देने का पर्व है।
यह हमें सिखाता है कि हर अंधकार के बाद प्रकाश आता है,
और सच्ची दीवाली वही है जब हम अपने भीतर के बुरे विचारों को मिटाकर प्रेम, करुणा और सत्य के दीप जलाएँ।