Lalach Never Succes :नैमिष क्षेत्र भारत का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। इसी नैमिष क्षेत्र में एक उदित नाम का ब्राम्हण सकुशल अपनी बीबी और बच्चों के साथ रहता था और अपने जीवन से खुश था ।
Lalach Never Succes 99 ka Chakkar-
वह ब्राम्हण बहुत ही ईमानदार था और प्रतिदिन की अपनी कमाई से संतुष्ट था। उसे किसी तरह का लालच नहीं था। उसका भरण
पोषण अच्छे से चल रहा था ब्राम्हण की पत्नी भी अपनी पति की कमाई हुई आय से खुश थी और बड़ी कुशलता से अपनी गृहस्थी चलाती थी। हम ये कह सकते है उस ब्राम्हण की जिंदगी बड़े आराम से हंसी-खुशी से गुजर रही थी।
Lalach Never Succes ब्राम्हण का बुलावा-
वह ब्राम्हण अपने काम में बहुत निपुण था। एक दिन वहां के सामंत ने जरुरी काम से ब्राम्हण को अपने पास बुलवाया और अपने जरुरी काम को संपन्न कराक र उसे एक स्वर्णमुद्रा प्रदान भेंट की। फिर उस ब्राम्हण से कहा कि तुम हमारे यह आकर नित्य प्रति यही काम करोगे।
ब्राम्हण ने भी बड़ी प्रसन्नता से सामंत का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। ब्राम्हण रोज सामंत के घर जाने लगा और प्रतिदिन सामंत का काम करता सामंत पहले दिन की तरह ब्राम्हण को रोज एक स्वर्ण मुद्रा देते।
इस तरह से ब्राम्हण को सामंत के यहाँ काम करते हुए काफी समय व्यतीत गया और ब्राम्हण के पास काफी पैसा हो गया। इतना पैसा पाकर ब्राम्हण की पत्नी भी बड़ी खुश हुई। ब्राम्हण के परिवार की जिन्दगी बड़े आराम से कटने लगी। घर पर किसी वास्तु की कमी नहीं रह गयी। सामंत के यहां नियमित काम मिलने से ब्राम्हण की हर महीने अच्छी रकम की बचत भी होने लगी। ब्राम्हण का परिवार खुशहाली से रहने लगा। ब्राम्हण निश्चिन्त होकर रोज सामंत के घर जाता और काम निपटाकर वापस अपने घर आ जाता।
यक्षदूत का मिलना–
एक दिन की बात जब ब्राम्हण सामंत के घर से वापस अपने घर जा रहा था तो उसे रस्ते में एक आवाज सुनाई दी लेकिन कोई दिखाई नहीं दिया। ब्राम्हण ने चारो तरफ पुनः ध्यान से देखा लेकिन उसे फिर भी कोई दिखाई नहीं दिया और आगे चल दिया।
उसे फिर आवाज सुनाई दी ब्राम्हण सहम गया लेकिन उसने साहस करके कहा अरे भाई तुम कौन हूँ दिखाई नहीं दे रहे हो तब फिर आवाज आयी मै यक्षदूत हूँ। ब्राम्हण घबरा गया। यक्षदूत ने ब्राम्हण से कहा, ‘‘मैंने तुम्हारी ईमानदारी के बहुत चर्चे सुने हैं और
मैं तुम्हारी इस ईमानदारी से बहुत प्रसन्न हूँ। इसलिए मै तुम्हे कुछ देना चाहता हूँ। ब्राम्हण को आश्चर्य हुआ। यक्षदूत ने कहा हम तुम्हें स्वर्ण मुद्राओं से भरे चार डेक देना चाहता हूँ। क्या तुम मेरे दिये हुए डेक ले सकते हो? Lalach Never Succes
यक्षदूत का ब्राम्हण को उपहार देना-
यक्षदूत के उक्त वचन सुनकर ब्राम्हण भयभीत हो गया । यक्षदूत ने कहा डरो मत आपका कोई नुकसान नहीं होगा यह बात सुनकर ब्राम्हण निडर हो गया और उसके मन में लालच आ गया। लालच आने से ब्राम्हण ने यक्षदूत के दिये हुए डेक लेने का मन बना लिया और कहा हाँ मै डेक लूँगा। Lalach Never Succes
ब्राम्हण का उत्तर सुनकर यक्षदूत ने कहा, ‘‘ठीक है सभी डेक आज शाम को तुम्हारे घर आ जाएँगे।’’ अब तुम घर जाओ।
ब्राम्हण सोचते हुए घर की ओर चल पड़ा और रोज की तरह शाम को अपने घर पहुँचा। पत्नी पानी लेकर आयी , ब्राम्हण ने पानी पिया। ब्राम्हण कुछ बोलता इससे पहले उसकी पत्नी ने कहा कि सामंत के चाकर स्वर्ण मुद्राओं से भरे चार डेक दे गए है।
ब्राम्हण को आश्चर्य हुआ और सोचा की यक्षदूत कितना सच्चा निकला। ब्राम्हण ने सभी डेक देखे और अपनी पत्नी को रास्ते की सारी बातें बताईं।
फिर पति पत्नी दोनों ने एक एक कर चारो डेक को खोलकर देखा । यह क्या तीन डेक पुरे भरे थे लेकिन चौथा डेक थोड़ा सा खाली था। दोनों सोच विचार में पड़ गए कि यक्षदूत ने चौथा खाली क्यों दिया।
चौथा डेक भरने का लालच–
ब्राम्हण के घर में सामंत के घर किये गए काम से पैसे आ रहे थे ब्राम्हण की पत्नी से कहा,‘‘ कुछ ज्यादा सोचने की जरुरत नहीं है” चौथे डेक को भरने का हल हम ये निकालेंगे कि जो हम बचत कर रहे है उस बचत में थोड़ी और बढ़ोत्तरी कर देंगे और इस डेक को जल्दी भर देंगे। इसके बाद हम इस धन का को खर्च करेंगे। इतना धन है जिंदगी आराम से कट जाएगी।
ब्राम्हण की पत्नी ने अपनी बचत बढ़ा दी और डेक में डालने लगी। 15 दिन बाद गौर से देखा तो वह डेक कुछ खास भरा हुआ नहीं दिखाई दिया। तब ब्राम्हण की पत्नी ने डेक में एक निशान लगा दिया और कहा अब दिखाई देगा कि डेक कितना भर गया है। ब्राम्हण की पत्नी रोज डेक में स्वर्णमुद्राएँ डालती गयी। 15 दिन के बाद पुनः डेक को ध्यान देखा तो भी वह डेक लगाए गए निशान के बराबर ही था। Lalach Never Succes
ब्राम्हण और उसकी पत्नी दोनों परेशान होने लगे डेक को भरने के लिए उन्होंने अपनी बचत बढ़ा दी और कहने में कटौती करने लगे। लेकिन चौथा डेक नहीं भरा।
ब्राम्हण के घर कलह उत्पन्न होना-
चौथा डेक जब नहीं भर रहा था तब दोनों उनके घर में कलह उत्पन्न होने लगा रोज रोज ब्राम्हण और उसकी पत्नी में झगड़ा होने
लगा उनकी दिनचर्या बिगड़ गयी। ब्राम्हण बात बात पर तर्क करने लगा।
ब्राम्हण के बदले हुए वर्ताव को देखकर एक दिन सामंत ने ब्राम्हण से उसकी परेशानी का कारण पूछा। तब ब्राम्हण ने कहा घर के खर्चों को लेकर मेरी पत्नी रोज लड़ती है अब आपके दिए गए मेहनताना से घर का खर्च नहीं चल पा रहे है। ब्राम्हण की यह बात सुनकर सामंत ने ब्राम्हण का मेहनताना दो गुना बढ़ा दिया। ब्राम्हण सामंत के घर काम करता रहा लेकिन बढे हुए मेहनताने से भी ब्राम्हण के चहरे पर ख़ुशी नहीं लौटी अपितु ब्राम्हण का वर्ताव बिगड़ता गया।
ब्राम्हण को समझ आना-
ब्राम्हण के बिगड़ते वर्ताव को दखकर समान्त ने फिर एक दिन ब्राम्हण से पूछा कि हमारे मेहनताना बढ़ने के बावजूद तुम्हारा वर्ताव ठीक नहीं हुआ है क्या कारण है हमें बताओ शायद कोई उपाय हम तुम्हे बता सके। तब ब्राम्हण ने सामंत को उन डेकों की बात सामंत को बता दी। यह सुनकर सामंत ने कहा कि ये डेक तुम्हे यक्षदूत ने दिया है ब्राम्हण ने कहा हाँ यक्षदूत ने दिया है।
यह सुनकर सामंत ने कहा ये डेक तुम उस यक्षदूत को वापस कर दो यह चौथा डेक लालच का डेक है, यह कभी नहीं भरेगा और तुम्हारी जिंदगी तबाह हो जाएगी। ब्राम्हण के दिमाग में सामंत की बात आ गयी और ब्राम्हण यक्षदूत के रहस्य को भी समझ गया। तुरंत ब्राम्हण ने यक्षदूत को उसके दिए हुए चारों डेक सम्मान के साथ वापस कर दिया। Lalach Never Succes
उसके बाद ब्राम्हण के जीवन में धीरे धीरे सुधर होने लगा उसका वर्ताव सुधर गया। पति पत्नी के बीच होने वाला झगड़ा समाप्त हो गया। ब्राम्हण की बचत भी होने लगी। लालच समाप्त होते ही ब्राम्हण सुखी हो गया और खुश रहने लगा।
निश्कर्ष एवं शिक्षा Lalach Never Succes-
इससे हमे यह सीख मिलती है कि हमें लालच नहीं करना चाहिए। कहा भी गया है “लालच बुरी बला है” ईश्वर ने हर व्यक्ति को
उसकी आवश्यकता के अनुसार और व्यक्ति के कर्मानुसार उपयोग की सभी वस्तुएं दी है ।जो भी वस्तुएं आपके पास है उसी में खुश रहो और अन्य आवश्यकता की वस्तुए पाने के लिए मेहनत करते हुए प्रयत्न कीजिये। आपका जीवन सुखी और खुशहाली से भरा होगा। चौथे डेक को भरने का लालच कभी ख़त्म नहीं होगा और जीवन कलह पूर्ण होगा। Lalach Never Succes
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ब्राम्हण यदि उस धन का उपभोग करता तो उसका जीवन और खुशहाल हो जाता लेकिन वह चौथे डेक को भरने के फेर में पड़ गया। यानि 99 का चक्कर। Lalach Never Succes
अतः लालच न करे हमेशा खुश रहे। ईश्वर ने जो दिया वह आपकी क्षमता के अनुसार है।
हमेशा खुश रहे, मस्त रहे व्यस्त रहे।
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