Chhath puja kya hai: छठ पूजा को महत्त्व,छठ पूजा क्या है? इसे क्यों मनाया जाता हैं? आइये जानते छठ पूजा को क्यों कैसे, कब और कौन लोग मानते है।
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1. Chhath puja छठ पूजा क्या है?
Chhath puja kya hai :हमरे देश में अनेको प्रकार के वृत और त्यौहार मनाये जाते है। उन्ही मे से एक है छठ पूजा। छठ पूजा (Chhath puja) हिन्दू धर्म में मनाया जाने वाला एक अटूट आस्था का महापर्व है जिसे चार दिनों तक लगातार मनाया जाता है। इस पर्व को (Chhath puja) छठ पर्व , डाला छठ, सूर्य छठी , छठी माई, छठ पूजा, छठ माई,एवं छठी के नाम से भी जाना जाता है। Chhath puja पूर्णतयः सूर्य को समर्पित है।
छठ पूजा का उल्लेख रामायण एवं महाभारत में भी मिलता है इस प्रकार यह पर्व रामायण एवं महाभारत काल से चला आ रहा है। (Chhath puja) छठ पूजा में मुख्य रूप से सूर्य की उपासना की जाती है। लेकिन बाकी हिन्दू पर्वों की तरह इसमें मूर्ति पूजा शामिल नहीं है। पौराणिक मान्यता के अनुसार छठी माता भगवान सूर्य की बहन हैं इसीलिए यह पर्व मनाया जाता है।
2. छठ पूजा क्यों मनाते है?
छठ पूजा (Chhath puja) का पर्व अपने परिवार के सदस्यों की सुरक्षा एवं स्वास्थ्य रहने के लिए मनाया जाता है। (Chhath puja) के दिन प्राकृतिक सौंदर्य एवं परिवार के कल्याण के लिए पूजा की जाती है। यह माना जाता है कि छठ पूजा करने से परिवार में सुख समृद्धि और शांति बानी रहती है तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति भी होती है।
कुछ महिलाएं Chhath puja को पुत्र रत्न की प्राप्ति करने के उद्देश्य से वृत्त रखती है और पुत्र के सकुशल रहने की कामना को लेकर Chhath puja का व्रत रखती हैं। वैंसे तो इस दिन स्त्री एवं पुरुष दोनों ही लगभग समान रूप से व्रत रखते हैं। पुरुष भी अपने मनवांछित फल प्राप्ति के लिये इस कठोर व्रत को रखते हैं। रोगी या फिर रोगी परिवारजन रोग से मुक्ति पाने के पाने के लिए Chhath puja करते हैं।
3. छठ पूजा मनाने का समय-
छठ पूजा का पर्व साल में दो बार आता है। छठ पूजा का पर्व साल में पहली बार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है और दूसरी बार चैत्र माह की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है, लेकिन कार्तिक मास की षष्ठी को मनाया जाने छठ पूजा पर्व मुख्य पर्व है। यह छठ पूजा का पर्व हर साल मनाया जाने वाला पर्व है।
छठ पूजा का पर्व मनाने के पीछे बहुत सी पौराणिक मान्यताएं हैं. इससे जुड़ी हुई बहुत सी कथाएं भी प्रचिलित हैं। छठ पूजा पर्व का अनुष्ठान बहुत ही कठोर म हैं। यह छठ पूजा निर्जल व्रत है पूजा करने सदस्य पानी तक नहीं पीता है। छठ पूजा करने वाले भक्त पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं जो कि इस पर्व में एक उपासक को करना होता है। पर्यावरणविदों के अनुसार भी छठ पूजा को प्रकृति के अनुकूल माना गया है।
4. छठ पूजा का महत्व-
1. छठ पूजा वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानाया जाता है। छठ पूजा पर मुख्यरूप से भगवान सूर्य की पूजा एवं आराधना की जाती है। सूर्य की किरण सभी प्रकार से लाभदायक होती है। वैसे भी सूर्य को अर्ध्य देने की प्रथा प्रचलित है। छठ पूजा के पर्व में प्राकर्तिक वस्तुओं जैंसे बांस, प्राकर्तिक फल-फूल, गन्ने का रस आदि।
का उपयोग होता है और छठ पूजा में चंदन, चावल, सिंदूर, धूपबत्ती, कुमकुम, कपूर, फल, शहद– हल्दी, मूली और अदरक का हरा पौधा आदि आवश्यक पूजा की सामग्री है।
2. छठ पूजा का व्रत प्राकर्तिक सौंदर्य व स्वास्थ्य लाभ के लिए रखा जाता है। मन जाता है महिलाएं पुत्र रत्न की प्राप्ति करने के उद्देश्य से वृत्त रखती है और पुत्र के सकुशल रहने की कामना को लेकर Chhath puja का व्रत रखती हैं। छठ व्रत रखने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यह दिन विशेष माना जाता है।
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5. पौराणिक कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार, प्रियव्रत नामक एक राजा की कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के उन्होने हर जतन किया लेकिन पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई, तब महर्षि कश्यप ने राजा को संतान प्राप्ति के लिए पुत्र प्राप्ति यज्ञ करने का परामर्श दिया।
यज्ञ किया और यज्ञ के बाद महारानी ने एक पुत्र रत्न को जन्म दिया, लेकिन वह मृत पैदा हुआ। राजा के मृत बच्चे की सूचना से पूरे नगर में शोक छा गया। यह कहा जाता है कि जब राजा मृत बच्चे को दफनाने की तैयारी कर रहे थे, तभी आसमान से एक ज्योतिर्मय वाहन धरती पर उतरा।
वाहन बैठी देवी ने कहा, ‘मैं षष्ठी देवी हूँ और विश्व के समस्त बालकों की रक्षा करती हूँ ।’ इतना कहकर देवी ने मृत शिशु को स्पर्श
किया, जिससे वह जीवित हो गया । पुत्र के जीवित होने के बाद से ही राजा ने अपने राज्य में षष्ठी देवी त्योहार मनाने की घोषणा कर दी। तब से यह छठ पूजा (Chhath puja) का पर्व मनाया जा रहा है।
6. छठ पूजा कैसे मनाया जाता है?
प्राप्त जानकारी के अनुसार छठ पूजा सबसे मुख्य वृत्त है छठ व्रत और यह व्रत काफी कठिन होता है। छठ पूजा पर्व चार दिनों तक लगातार मनाया जाता है और इसकी शुरुआत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से हो जाती है।
प्रारम्भ में पहले दिन सेंधा नमक और घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी को प्रसाद के रूप में खाया जाता है उसके अगले दिन से व्रत की शुरुआत होती है।
दूसरे दिन बिना अन्न जल ग्रहण किये व्रत रखना होता है और शाम को गुड़ या गन्ने के रस और चावल से बनी खीर को एकांत में ग्रहण किया जाता है उसके बाद इसे घर के सभी सदस्यों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। षष्टी तिथि के दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और अंतिम दिन सप्तमी को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का प्रचलन है। इस दिन सूर्य की दोनों पत्नियां उषा अर्थात सूर्योदय एवं प्रत्युषा अर्थात सूर्यास्त की पूजा भी की जाती है।
छठ व्रत में बिना अन्न जल ग्रहण करे रहना, सूर्य को कमर तक पानी में खड़े होकर अर्घ्य देना, एकांत में प्रसाद ग्रहण करना, साफ सफाई का विशेष ध्यान रखना आदि कठोर नियम शामिल है।
बिहार में षष्ठी माता के लोकगीत बहुत प्रचिलित हैं। छठ पूजा की शुरुआत होती घरों एवं मंदिरों से छठ माता के लोकगीतों की गूंज सुनाई पड़ने लगती है।
इस साल 2022 में छठ पूजा पर्व 30 अक्टूबर, रविवार को मनाया गया।