Shrikrishna aur Bhishmpitamah sambad

Shrikrishna aur Bhishmpitamah sambad :महाभारत के अन्तिम क्षण मे श्रीकृष्ण और भीष्म पितामह के मध्य हुए महत्वपूर्ण संवाद के भविष्य सूचक अंश।

Shrikrishna aur Bhishmpitamah sambad-

hrikrishna aur Bhishmpitamah sambad :किसी भी युध्द की अन्तिम स्थिति बहुत ही अविस्मरणीय होती है यही हाल कुछ महाभारत का था। महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था, युद्धभूमि में इधर उधर योद्धाओं के फटे हुए वस्त्र, टूटे हुए मुकुट, टूटे हुए शस्त्र, टूटे रथों के चक्के आदि बिखरे हुए थे। वायुमण्डल में घोर उदासी छायी हुई थी.

कुत्ते , गिद्ध , सियार , एवं अन्य जानवरों  की उदास और डरावनी  आवाज ही सुनाई दे रही थी

 
निर्जन हो चुकी कुरुक्षेत्र की उस भूमि में द्वापर का सबसे महान योद्धा “देवव्रत” (भीष्म पितामह) शरशय्या पर  पडे सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर  रहे थे

तभी  “प्रणाम पितामह” की  एक परिचित सुरीली ध्वनि उनके कानों में सुनाई देती है,

भीष्म के सूख चुके अधरों पर एक  अनायास मुस्कान उभरती है , और  वे बोले
, ” आओ देवकीनंदन आओ !  तुम्हारा स्वागत है.

मैं बहुत देर से तुम्हारा ही स्मरण कर रहा था।

कृष्ण बोले , “क्या कहूँ
पितामह ! अब तो यह भी नहीं पूछ सकता हूं कि आप कैसे हैं !

भीष्म चुप रहे , कुछ क्षण बाद फिर बोले,” पुत्र युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करा चुके ? 

उनका ध्यान रखना , परिवार बुजुर्गों से रिक्त हो चुका है अब राजप्रासाद में उन्हें अब सबसे अधिक तुम्हारी ही आवश्यकता होगी

कृष्ण चुप रहे,

भीष्म ने पुनः कहा , केशव “कुछ पूछूँ ? 

बड़े अच्छे समय से आप आये हो ! 

सम्भवतः जीवन छोड़ने के पूर्व मेरे स्वयं के अनेक भ्रम समाप्त हो जाँय।

कृष्ण बोले – कहिये न पितामह  

पितामह ने कहा, एक बात बताओ प्रभु !  तुम तो ईश्वर हो

कृष्ण ने बीच में ही टोका ,  और कहा  “नहीं पितामह ! मैं ईश्वर नहीं  हूं मैं तो आपका पौत्र हूँ

 भीष्म उस घोर पीड़ा में भी  हंसे  और  बोले , मै अपने जीवन का स्वयं कभी आकलन नहीं कर पाया हूं, सो यह नहीं जानता कि अच्छा रहा हूं या बुरा , परंतु अब तो इस  जमी से जा रहा हूँ,  पर कन्हैया  अब तो ठगना छोड़ दो।

कृष्ण भीष्म के पास आये और उनका हाथ पकड़ कर बोले कहिये पितामह ! “क्या कहना चाहते हैं?

भीष्म बोले , एक बात बताओ कन्हैया !  इस युद्ध में जो भी हुआ क्या  वो ठीक था?

कृष्ण ने कहा किसकी ओर से पितामह?  कौरवों की ओर से या पांडवों की ओर से ?

 कन्हैया ” कौरवों के कृत्यों पर अब चर्चा का कोई अर्थ ही नहीं है पर क्या पांडवों की ओर से जो हुआ वो सही था ?  आचार्य द्रोण का वध, दुःशासन की छाती का चीरा जाना ,  दुर्योधन की जंघा के नीचे प्रहार करना, जयद्रथ के साथ  छल , निहत्थे कर्ण का वध ,  क्या यह सब ठीक था?  क्या  यह सब उचित था ?

कृष्ण बोले, पितामह, इसका उत्तर मैं कैसे दे सकता हूँ

इसका उत्तर तो उन्हें देना चाहिए जिन्होंने यह सब किया  है.  

उत्तर दुर्योधन का वध करने वाले भीम दें , उत्तर कर्ण और जयद्रथ का वध करने वाले अर्जुन  दे।

 मैं तो इस युद्ध में कहीं था ही नहीं

पितामह बोले, कृष्ण ! अभी भी छलना नहीं छोड़ोगे?

 अरे विश्व  भले ही कहे कि महाभारत का यु को अर्जुन और भीम ने जीता है , परंतु मैं जानता हूँ कन्हैया कि यह विजय तुम्हारी, केवल तुम्हारी ही  है ! 

मैं तो उत्तर तुम्ही से पूछूंगा?

तब श्रीकृष्ण बोले “तो सुनिए पितामह कुछ बुरा नहीं हुआ , कुछ अनैतिक नहीं हुआ  

 वही हुआ जो हो होना चाहिए था  

पितामह बोले!  केशव , यह तुम कह रहे हो ? 

यह मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार श्री कृष्ण कह रहा है , यह छल तो किसी युग में भी हमारे सनातन संस्कारों  ने नहीं रहा, फिर यह उचित कैसे गया ?

श्रीकृष्ण ने कहा  शिक्षा इतिहास से ली जाती है पितामह, लेकिन निर्णय वर्तमान की परिस्थितियों के आधार पर लेना पड़ता है।

 हर युग अपने तर्कों और अपनी आवश्यकता के आधार पर अपना नायक चुनता है  

 राम त्रेता युग के नायक थे , मेरे हिस्से में द्वापर आया   

 हम दोनों का निर्णय एक जैसा नहीं हो सकता

 पितामह बोले, हे कृष्ण!  मैं नहीं समझ पाया, तनिक समझाओ तो  मुझे

श्रीकृष्ण ने कहा  ” राम और कृष्ण की परिस्थितियों में बहुत अंतर है   

राम के युग में खलनायक ‘ रावण ‘ भी शिवभक्त  था  तब रावण जैसी नकारात्मक शक्ति के परिवार में विभीषण जैसा  सन्त भी था , तब बाली जैसे खलनायक के परिवार में तारा जैसी विदुषी स्त्री थी  और अंगद जैसे सज्जन पुत्र थे  उस युग में खलनायक भी धर्म का ज्ञान रखता था

 इसलिए राम ने उनके साथ कहीं छल नहीं किया किंतु मेरे युग में कंस , जरासन्ध , दुर्योधन , दुःशासन , शकुनी , जयद्रथ जैसे घोर पापी है जो अन्याय के अलावा कुछ नहीं जानते हैं  हे पितामह !  उनकी समाप्ति के लिए हर छल उचित है । पाप का अंत आवश्यक है वह चाहे जिस विधि किया जाय।

  श्री कृष्ण “तो क्या तुम्हारे इन निर्णयों से गलत परम्पराएं प्रारम्भ नहीं होंगी? 

क्या भविष्य तुम्हारे इन छलों का अनुशरण नहीं करेगा ?

और यदि करेगा तो क्या यह उचित होगा ?

श्री कृष्ण बोले, पितामह भविष्य तो इससे भी अधिक नकारात्मक आ रहा है   

कलियुग में तो इतने से भी काम नहीं चलेगा

वहाँ मनुष्य को ही कृष्ण से भी अधिक कठोर होना पड़ेगा. नहीं तो धर्म समाप्त हो जाएगा  

पितामह यह जानिए कि जब क्रूर और अनैतिक शक्तियाँ , सत्य एवं धर्म का समूल नाश करने के लिए, आक्रमण कर रही हों,  तो
नैतिकता अर्थहीन हो जाती है   

तब महत्वपूर्ण होती है विजय , केवल विजय .

  भविष्य को यह सीखना ही होगा ?

पितामह ने कृष्ण से पूछा “क्या धर्म का भी नाश हो सकता है ?

और यदि धर्म का नाश होना  है , तो क्या मनुष्य इसे रोक सकता है ?

 श्री कृष्ण ने कहा “सब कुछ ईश्वर के भरोसे छोड़ कर बैठना मूर्खता होती है   

 ईश्वर स्वयं कुछ नहीं करता, वह केवल मार्ग दर्शन करता है

 सब कुछ मनुष्य को ही स्वयं  करना पड़ता है!

पितामह ,आप मुझे भी ईश्वर कहते हैं 

तो बताइए पितामह , मैंने स्वयं इस युद्घ में कुछ किया क्या ? 

सब पांडवों को ही करना पड़ा

यही प्रकृति का संविधान है  यहीं प्रकृति का नियम है. 

युद्ध के प्रथम दिन मैने अर्जुन से यही तो कहा था ,यही परम सत्य है

भीष्म अब सन्तुष्ट लग रहे थे  

उनकी आँखें धीरे-धीरे बन्द होने लगीं थी

 भीष्म ने कहा – चलो कृष्ण ! इस जमी पर यह अंतिम रात्रि है कल सम्भवतः चले जाना है अपने इस अभागे भक्त पर हमेशा कृपा बनाए रखना

यह सुनकर कृष्ण ने मन ही मन मे कुछ कहा और पितामह को प्रणाम करके लौट चले , लेकिन युद्धभूमि के उस डरावने अंधकार से भविष्य के जीवन के लिए सबसे बड़ा सूत्र मिल चुका था

जब अनैतिक और क्रूर शक्तियाँ  सत्य और धर्म का विनाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता का पाठ आत्मघाती होता है विनाशकारी होगा।

हमारी समस्या का समाधान इस बात पर निर्भर करता है कि हमारा सलाहकार कौन है

क्योंकि दुर्योधन शकुनि से सलाह लेता था और अर्जुन श्रीकृष्ण से। ये बहुत महत्वपूर्ण है

दोस्तो किसी भी पटकथा को लिखने के लिये उसे संग्रहीत करने मे काफी मेहनत करनी पडती है शब्दो और परिस्थितियों की तलास करनी होती है दिमाग का प्रयोग करना पडता है  किसी विषयवस्तु का संग्रहण बहुत ही मुश्किल होता है अत:सपोर्ट जरूर कीजिये।

प्रिय पाठक  कैसा लगा यह लेख हमें कमेंट के द्वारा जरूर  बताइए और मुस्कुराते रहिये क्योंकि मुस्कराने से हम स्वस्थ रहते है अपने दोस्तों से भी शेयर कीजिए ताकि वह भी कह सके। मुस्कुराने की वजह तुम हो 

Leave a Comment