what is beautiful thought work or Beauty ,हमारा समाज एक सभ्य समाज कहा जाता है इस समाज में एक दूसरे को मान और सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है और एक दूसरे का सम्मान किया जाता है हमारे समाज में एक दूसरे को निमंत्रण देने की प्रथा प्राचीन समय से चली आ रही है।
सुन्दर क्या है सोंच कर्म या सुन्दरता-
हमारा समाज एक सभ्य समाज कहा जाता है इस समाज में एक दूसरे को मान और सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है और एक दूसरे का सम्मान किया जाता है हमारे समाज में एक दूसरे को निमंत्रण देने की प्रथा प्राचीन समय से चली आ रही है।
एक बार एक सेठ ने अपने घर के मांगलिक कार्यक्रम में पंडित जी को निमंत्रण दिया एकादशी होने के कारण पंडित जी सेठ जी के यहां निमंत्रण में नहीं पहुंच सके लेकिन पंडित जी ने अपने दो शिष्यो को सेठ जी के यहां भोजन करने के लिये भेज दिया ।
भोजन करने के उपरांत जब दोनों शिष्य वापस लौटे तो उनमे से एक शिष्य बहुत दुखी था और दूसरा बहुत प्रसन्न था।
यह देख कर पंडित जी को आश्चर्य हुआ और उन्होंने शिष्यों से पूछा बेटा क्यो दुखी हो , क्या सेठ ने भोजन मे अंतर कर दिया ?
दोनों शिष्य से बोले “नहीं गुरु जी”
पंडित जी ने कहा तो क्या सेठ ने आसन देने मे अंतर कर दिया ?
दोनों शिष्य बोले “नहीं गुरु जी”
फिर पंडित जी ने शिष्यों से पूछा क्या सेठ ने दच्छिना देने मे अंतर कर किया ?
फिर दोनों से शिष्य बोले “नहीं गुरु जी, सेठ ने बराबर दो दो रुपए दक्षिणा दिया है “
यह सुनकर पंडित जी को बहुत आश्चर्य हुआ और पूछा जब सेठ जी ने बराबर बराबर दिया है तो तुम दुखी हो ?
तब दुखी चेला बोला गुरु जी मेरे मन में था कि सेठ बहुत बड़ा आदमी है कम से कम 20 रुपये दच्छिना देगा, 2 0 नहीं तो
10 रुपए जरूर देगा पर उसने 2रुपये दिये इसलिए मै दुखी हूं !!फिर पंडित जी ने दूसरे शिष्य से पूछा की तुम क्यो प्रसन्न हो ?
तो दूसरा शिष्य बोला गुरु जी मै जानता था सेठ बहुत कंजूस है और आठ आने से ज्यादा दच्छिना नहीं देगा ,यदि ज्यादा प्रसन्न होगा तो 75 पैसे दक्षिणा दे देगा पर उसने तो 2 रुपए दे दिये तो इसलिए मैं प्रसन्न हूं …!
यह सुनकर पंडित जी ने कहां कि *बस यही हमारे मन का हाल है, संसार मे घटित होने वाली घटनाए समान रूप से घटती है परंतु कोई उन घटनाओ से सुख प्राप्त करता है और कोई दुखी होता है , किंतु असल मे न दुख है और न सुख है। सुख और दुख ये हमारे मन की स्थिति पर निर्भर होते है
*इसलिए मन प्रभु चरणों मे लगाओ ,क्योकि – यदि कामना पूरी न हो तो दुख होता है और यदि कामना पूरी हो जाये तो सुख मिलता है लेकिन यदि कोई कामना ही न हो तो आनंद ही आनंद..
पंडित जी ने शिष्यों को समझाया कि
*शरीर को लोग सुन्दर समझते हैं।*
*मौत के बाद वही शरीर सुन्दर क्यों नहीं लगता ?*
* मृत शरीर को घर में न रखकर जला क्यों दिया जाता है ?*
* हम जिस शरीर को सुन्दर मानते हैं
उसकी चमड़ी तो उतार कर देखो।*
*तब हकीकत दिखेगी कि भीतर क्या है ?*
*भीतर तो बस*रक्त, *रोग, *मल और *कचरा भरा पड़ा है
*फिर यह शरीर सुन्दर कैसे हुआ.?
ध्यान रखने योग्य बाते-
*शरीर में कोई सुन्दरता नहीं है
*सुन्दर होते हैं व्यक्ति के कर्म, उसके विचार, उसकी वाणी, उसका व्यवहार, उसके संस्कार,और उसका चरित्र
*जिसके जीवन में यह सब है।
*वही इंसान दुनिया का सबसे सुंदर शख्स है.
वर्तमान”को आनंद से जियो
भूतकाल” को भूल जाओ
भविष्य को हरिइच्छा पे छोड़ दो
सदा ध्यान करो शांत और आनंदित रहो
सदैव प्रसन्न रहिये और मुस्कुराइए
जो प्राप्त है- वो पर्याप्त है
जिसका मन मस्त है
उसके पास समस्त है
जितना हो सके स्वयं के साथ रहना शुरू कीजिए
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