Ek Tokri Bhar Mitti Hindi Kahani-एक टोकरी भर मिट्टी

Ek Tokri Bhar Mitti Hindi Kahani

Ek Tokri Bhar Mitti एक टोकरी भर मिट्टी – सम्मान और संकल्प की कहानी एक विनम्र किसान का संघर्ष

Ek Tokri Bhar Mitti हिंदी कहानी गंगा के किनारे बसे एक छोटे से गाँवसे शुरु होती है , जहाँ एक गरीब किसान, रामू, अपने परिवार के साथ रहता था। उसके पास साधन बहुत कम थे – न तो उसके पास भरपूर ज़मीन थी और न ही कोई अच्छा व्यापार। फिर भी, उसकी सबसे बड़ी दौलत उसकी अथक मेहनत थी और अडिग ईमानदारी थी।

Ek Tokri Bhar Mitti रामू और उसके परिजन खेती करने के साथ-साथ कभी-कभार मजदूरी करके किसी तरह गुजारा करते थे। लेकिन उस साल बारिश ने उन्हें धोखा दे दिया, जिससे उनकी फसलें खराब हो गईं जिस कारण फसलें भी बहुत कम हुईं। हताश होकर रामू को गांव के धनी साहूकार सूर्या से कुछ पैसे उधार लेने पड़े। जो एक निर्दयी व्यक्ति था । सूर्या का दिल उतना ही कठोर था, जितना उसका खजाना भरा हुआ था।

जैसे-जैसे समय बीतता गया, सूर्या का धैर्य जवाब देता गया। किसान की दुर्दशा से बेपरवाह कर्जदार ने कर्ज चुकाने की अथक कोशिश शुरू कर दी। जब रामू ने हाथ जोड़कर दया की याचना की, तो सूर्या ने उपहास से भरी आवाज में कहा-

रामू अगर तुम पैसे नहीं चुका सकते, तो अपने खेत की जमीन से Ek Tokri Bhar Mitti एक टोकरी मिट्टी ले आओ।

Ek Tokri Bhar Mitti कोई साधारण मांग नहीं थी। यह साहूकार सूर्या क्रूर मजाक था, रामू को उसके गौरव से वंचित करने के उद्देश्य से किया गया एक ताना। सूर्या को मिट्टी नहीं, बल्कि समर्पण चाहिए था।

रामू सम्मान और निराशा के चौराहे पर खड़ा था। इस अपमान को सहने का विचार उसकी आत्मा को कुतर रहा था, फिर भी उसके बच्चों की खोखली आँखें और उसकी पत्नी की खामोश पीड़ा उसे आवश्यकता से बांधे हुए थी।

गोधूलि बेला में, उसने सहमति जताने का संकल्प लिया। यदि मिट्टी क्षणिक राहत की कीमत होती, तो वह चुकाता। भारी कदमों और भारी दिल के साथ, वह सुबह अपने खेत की ओर चल पड़ा,  उसके पैरों के नीचे की धरती खामोश धिक्कार फुसफुसा रही थी।

ek tokri bhar mitti
ek tokri bhar mitti

जैसे ही उसके हाथ मिट्टी की ओर बढ़े,  एक कमजोर और दृढ़ आवाज ने उसे रोक दिया वह आवाज उसकी माँ कमला की थी। कमला कमजोर उंगलियाँ रामू कलाई को पकड़ते हुए काँप उठीं।

यह भी पढ़े –बेटी की शिक्षा

शिक्षिका का त्याग

रामू बेटा, यह धरती तुम्हारी आत्मा है। इसे बेचा नहीं जा सकता है,

निराशा के सामने उसकी आँखों में भूख से भी गहरा दुख झलक रहा था। रामू का संकल्प डगमगा रहा था। वह घुटनों के बल बैठ गया, माथा जमीन पर टिका दिया, और उसे एहसास हुआ कि यह मिट्टी धूल से कहीं बढ़कर है; यह उसका वंश है, उसकी पहचान है, उसकी पवित्रता है।

अपने दिल को मजबूत करते हुए, रामू खाली हाथ, लेकिन बिना रुके, सूर्या के दरवाजे पर वापस चला गया। उसकी आवाज़, जो कभी प्रार्थना से भरी हुई थी, अब विद्रोह का भार उठा रही थी।

सूर्या मैं गरीब हो सकता हूँ, लेकिन मेरी ज़मीन कोई वस्तु नहीं है, जो उसे मै तुम्हे बेचू , मैं सिर्फ़ ज़िंदा रहने के लिए अपनी इज़्ज़त नहीं बेच सकता।

हवा में सन्नाटा छा गया। और फिर, एक-एक करके, गाँव वाले आगे बदने लगे। उन्होंने अन्याय बहुत देख लिया था। सिक्के, अनाज और एकजुटता के शब्द बह निकले, जो समर्थन की लहर में मिल गए।

सूर्या, अपनी सारी दौलत के बावजूद, खुद को आत्मा में दरिद्र पाता था। उसने पराधीनता खरीदने की कोशिश की थी, लेकिन इसके बजाय उसने एक एकीकृत लोगों की अजेयता देखी थी। अनिच्छा से, उसने हार मान ली।

Ek Tokri Bhar Mitti हिंदी कहानी की सीख

एक टोकरी मिट्टी हमें एक अपरिवर्तनीय सत्य सिखाती है- गरिमा दरिद्रता को ग्रहण कर लेती है। कठिनाई किसी व्यक्ति को झुका सकती है, लेकिन सच्चा साहस टूटने से इनकार करने में निहित है।

ऐसी दुनिया में जहाँ सोना सम्मान से भारी होता है, रामू की अवज्ञा एक वसीयतनामा के रूप में खड़ी है: सभी खजाने सिक्कों में नहीं तौले जाते। कुछ दिल में होते हैं, जिस धरती पर हम खड़े हैं, उसके ताने-बाने में बुने होते हैं।

Leave a Comment