My Own Time and Life:हर व्यक्ति अपने अपने जमाने की बात करता है कोई आज की बात करता है कोई 50 साल पहले की बात करता है कोई 70-80 साल पहले की बात करता है

My Own Time and Life:हर व्यक्ति अपने अपने जमाने की बात करता है कोई आज की बात करता है कोई 50 साल पहले की बात करता है कोई 70-80 साल पहले की बात करता है
तो कोई 100 साल पहले की बात करता है। हमारे दादा अपने जमाने की बात करते थे हम अपने जमाने की बात करते हैं और आने वाली पीढ़ी अपने जमाने की बात करेगी। जो भी है सब अपने अपने जमाने की बात करते हैं।
बात अपने जमाने की-
हमें स्वयं ही पैदल स्कूल जाना पडता था क्योंकि उस समय साइकिल भी कुछ ही लोग खरीद पाते थे गॉव में वाहन की सुविधा नहीं थी। My Own Time and Life
हम ये कह सकते है कि बच्चों को स्कूल छोडने का रिवाज नही था।, स्कूल भेजने के बाद हमारे साथ क्या अच्छा होगा क्या बुरा होगा ये हमारे मां बाप नहीं सोचते थे। उनको किसी बात का डर भी नहीं होता था क्योंकि सब मिल जुल कर रहते थे। My Own Time and Life
परीक्षा में पास होना या फेल होना यह हम जानते थे प्रतिशत के बारे में हम नहीं सोंचा करते थे। हमने ट्यूशन लगाई है या नहीं बताने में शर्म आती थी क्योंकि उस समय ट्यूशन पढ़ने वाले को नकारा समझा जाता था. मतलब उसे कुछ भी नहीं आता।
किताबों में पीपल के पत्ते रखना,मोर पंख रखना विद्या के पत्ते रखना शौक भी था और यह भी माना जाता था कि इससे हम होशियार हो सकते हैं ऐसी हमारी सोच हुआ करती थी। कपड़े के बस्तों मे और ताखों में किताबें कॉपियां बेहतरीन तरीके से संजोकर रखना हमें मालूम था। My Own Time and Life
नई कक्षा-
हर साल नई कक्षा का बस्ता सजाते थे और कांपी किताबों पर रद्दी पेपर की जिल्द चढ़ाते थे और हमारा यह काम एक वार्षिकोत्सव की तरह होता था। हर साल परीक्षा में पास होने के बाद किताबें बेचना और अगली कक्षा के लिए पुरानी किताबें खरीदने में हमें किसी प्रकार की शर्म नहीं होती थी। क्योंकि हमारे जमाने में हर साल किताबें नहीं बदलती थी और पाठ्यक्रम कब बदला होगा हमें पता ही नहीं। My Own Time and Life
हम जैसे अधिकतर बच्चे कक्षा पास करने के बाद अपनी किताबें दूसरे बच्चों को पढ़ने के लिए मुफ्त में दे दिया करते थे। हमारे माता पिताजी को हमारी पढ़ाई लिखाई कभी बोझ लगी हो,ऐसा कभी हमें महसूस ही नहीं हुआ। किसी एक दोस्त को अपनी साइकिल के अगले डंडे पर और दूसरे दोस्त को पीछे कैरियर पर बिठाकर गली-गली घूमना हमारा भी शौक था।
.jpg)
मार खाना-
स्कूल में मास्टर जी के हाथों मार खाना, दोनों हाथों से पैर के अंगूठे पकड़ कर खड़े रहना, और कान जब तक लाल ना हो जाएं तब तक मरोड़े रखना, इन कार्यों में भी हमारा ईगो कभी आड़े नहीं आता था। सही मायने में ईगो क्या होता है हमें मालूम ही नहीं था। My Own Time and Life
शैतानी हो जाने के बाद मां-बाप से मार खाना और काम ना पूरा होने पर स्कूल में मास्टर जी से मार खाना भी हमारे जीवन की एक सामान्य प्रक्रिया थी। मारने वाला और मार खाने वाला दोनों ही खुश रहते थे।
मार खाने वाला इसलिए खुश होता था क्योंकि कल से आज कम मार पडी हैं और मारने वाला इसलिए खुश होता था कि आज फिर हाथ साफ कर लिया। स्कूल में कितनी भी मार पड़ती लेकिन माता पिता उसकी उलाहना लेकर स्कूल नहीं जाते थे। My Own Time and Life
पाकेट मनी और खुशी-
हमने पॉकेट मनी की कभी मांग नहीं की और माता पिता ने कभी दी भी नहीं तब हमारी छोटी-छोटी आवश्यकताएं होती थी। साल में कभी-कभार दो चार आने मिल जाया करते थे कभी कभार सेव, मुरमुरे का भेल, गोली टॉफी और कम्पट खा लिया करते थे तो इतना ही बहुत होता था और उसी में हम बहुत खुश रहते थे।
हमारी छोटी मोटी जरूरतें तो घर का कोई भी सदस्य पूरी कर देता था क्योंकि उस समय परिवार संयुक्त होते थे।
दिवाली में बहुत कम मात्रा मे लाये गये पटाखों की लड़ी को छुट्टा कर करके एक एक पटाखा फोड़ना बहुत अच्छा लगता था और इसमें हमको कभी अपमान महसूस नहीं हुआ।
अपने मां-बाप को हम कभी यह बता ही नहीं पाए की हम आपको कितना प्यार करते हैं क्योंकि आई लव यू हमें पता ही नहीं था और सब मिल जुल कर रहना जानते थे। My Own Time and Life
आज हम दुनिया के सैकड़ों धक्के खाते हुए, लोगों के टान्ट सुनते है और संघर्ष करती हुई हमारी जिंदगी दुनिया का एक हिस्सा है किसको क्या मिला किसको क्या नहीं मिला, यह हमें पता ही नहीं।
शौक एवं यादें-
बिना चप्पल जूते के खेलना और किसी भी गेंद के साथ लकड़ी के पट्टियों से किसी जगह पर भी नंगे पैर क्रिकेट खेलने में क्या आनंद आता था, हमें आज भी याद आता है ।
.jpg)
कपड़ों में सलवटें ना पड़ने देना कपड़े प्रेस करने का इंतजाम कैसे करते थे कृपया यह मत पूछो। रिश्तों को निभाना रिश्तों का पालन करना हमने अच्छे से सीखा। My Own Time and Life
स्कूल की डबल ट्रिपल सीट पर बैठने वाले, साइकिल पर घूमने वाले ,और स्कूल के बाहर गोली टाफी बेचने वाले की दुकान पर दोस्तों के द्वारा कुछ भी खिलाए जाना हमें याद है. स्कूल के वह दोस्त कहां चले गए , वह बेर वाली कहां खो गई. वह चूरन बेचने वाली कहां गुम हो गई।कुछ भी पता नहीं।
हम दुनिया में कहीं भी रहे पर यह सत्य है कि हम वास्तविक दुनिया में बड़े हुए हैं हमारा वास्तविकता से सामना हुआ है।
सुबह का खाना और रात का खाना इसके सिवा टिफिन में अखबार में लपेट कर रोटी ले जाने का सुख क्या है, आजकल के बच्चों को पता ही नहीं। My Own Time and Life
हम अपने नसीब को दोषी नहीं ठहरा सकते ,जो जीवन जी रहे हैं वह आनंद से जी रहे हैं यही सोचते हैं, और यही सोचकर हमें जीवन जीने में मदद भी मिल रही है। जो जीवन हमने तब जिया है उसकी वर्तमान से तुलना नहीं की जा सकती। दिमाग शून्य है जाने कैसे
हम अच्छे थे या बुरे थे यह मालूम नहीं पर हमारा भी उस वक्त का एक जमाना था।
आज हम नि:संकोच यह कहते है कि अपने साक्षात देवी देवता तुल्य माता -पिता, भाई एवं बहनों का श्रृणी हूं जिनके अतुल्य लाड- प्यार, आशीर्वाद , लालन पालन व दिए गए संस्कारो से हम परिपूर्ण है।
हम यह पूर्ण विश्वास से कहता हूं कि जो भी पाठक इसे पूरा पढ़ेगा उसे अपने बीते जीवन के कई पुराने सुहाने पल अवश्य याद आयेंगे।