खुद प्रयास करो Try yourself भगवान पर निर्भर मत रहो

खुद प्रयास करो, Try yourself, भगवान पर निर्भर मत रहो :एक समय की बात है एक गाँव में एक साधु रहते थे, वह भगवान के बहुत बड़े भक्त थे

खुद प्रयास करो, Try yourself भगवान पर निर्भर मत रहो

बहुत समय पहले की बात है। एक शांत, सुरम्य गाँव में एक साधु रहते थे। वे अत्यंत तपस्वी थे और उनका पूरा जीवन ईश्वर की भक्ति और साधना में समर्पित था। रोज़ सुबह उठकर वे गाँव के बाहर एक पुराने पीपल के वृक्ष के नीचे बैठते, ध्यान लगाते, मंत्रों का जाप करते और ईश्वर को याद करते। गाँव वाले भी उन्हें बहुत मानते थे — कोई उन्हें श्रद्धा से “गुरुदेव” कहता तो कोई “महाराज”। उनकी साधना में आस्था इतनी गहरी थी कि वे हर सुख-दुख को भगवान की इच्छा मानते और कभी किसी सांसारिक चिंता में नहीं पड़ते।

एक दिन अचानक मौसम ने करवट बदली। आसमान में काले बादल घिर आए, तेज़ हवाएँ चलने लगीं और देखते ही देखते मूसलधार बारिश शुरू हो गई। यह बारिश थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। कुछ ही घंटों में गाँव जलमग्न होने लगा। नदी उफान पर थी और उसके पानी ने पूरे गाँव को चारों ओर से घेर लिया।

गाँव के लोग जैसे-तैसे अपना सामान समेटकर ऊँचाई वाले स्थानों की ओर भागने लगे। इसी बीच कुछ लोग साधु महाराज के पास भी पहुँचे। वे चिंतित थे कि महाराज इस संकट की घड़ी में भी पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान लगाए बैठे हैं।

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एक ग्रामीण बोला, “महाराज! यह स्थान अब सुरक्षित नहीं है। चलिए हमारे साथ, हम आपको सुरक्षित स्थान पर ले चलते हैं।”

पर साधु मुस्कुराए और बोले, “मुझे चिंता नहीं है। मेरा परमात्मा स्वयं मेरी रक्षा करेगा। तुम लोग जाओ, अपनी चिंता करो।”

लोग उन्हें समझाते रहे, पर जब देखा कि साधु टस से मस नहीं हो रहे, तो वे विवश होकर वहाँ से चले गए।

बारिश थमती नहीं थी। कुछ ही देर में पानी साधु की कमर तक आ गया। तभी एक नाव वहाँ से गुज़री। नाव में गाँव का एक मल्लाह बैठा था, जिसने साधु को आवाज़ दी – “महाराज! जल्दी आइए, मेरी नाव में बैठ जाइए, नहीं तो पानी और बढ़ेगा।”

पर साधु का उत्तर वही था – “नहीं भाई! मुझे तेरी नाव की आवश्यकता नहीं है। मेरा भगवान स्वयं मुझे बचाने आएगा।”

नाव वाला भी भारी मन से आगे बढ़ गया।

कुछ घंटे बीते। अब पानी इतना बढ़ गया था कि साधु को पेड़ पर चढ़ना पड़ा। ठंडी हवा, बारिश और गड़गड़ाहट के बीच वे वहीं बैठकर भगवान का नाम जपते रहे।

तभी आसमान में एक हेलिकॉप्टर दिखाई दिया। यह बचाव दल का हेलिकॉप्टर था। उन्होंने नीचे रस्सी डाली और माइक पर बोले – “साधु महाराज! यह आखिरी मौका है। रस्सी पकड़िए, हम आपको ऊपर खींच लेंगे।”

परंतु साधु का उत्तर वही था – “मुझे इस रस्सी की आवश्यकता नहीं है। मेरा ईश्वर मुझे स्वयं बचाने आएगा।”

बचाव दल ने बहुत प्रयास किया, पर जब साधु नहीं माने तो उन्हें छोड़कर जाना पड़ा।

आखिरकार, वह पेड़ भी पानी की धारा में बह गया। साधु डूब गए और उनका देहांत हो गया।

मरने के बाद साधु स्वर्ग पहुंचे। वहाँ उन्होंने ईश्वर से प्रश्न किया – “हे प्रभु! मैंने जीवन भर तुम्हारी भक्ति की, साधना की, तप किया। फिर भी जब मेरी जान पर बनी, तब तुम मेरी सहायता को नहीं आए। ऐसा क्यों?”

भगवान मुस्कराए और बोले – “हे साधु, मैंने तुम्हारी रक्षा के लिए तीन बार प्रयास किया – पहली बार ग्रामीणों के रूप में, दूसरी बार नाव वाले के रूप में और तीसरी बार हेलिकॉप्टर बचाव दल के रूप में। पर तुमने हर बार मेरी मदद को ठुकरा दिया। मैं तो तुम्हारी सहायता करना चाहता था, लेकिन तुमने मेरी पहचान नहीं की।”

शिक्षा:

इस कथा से हमें यह समझने को मिलता है कि भगवान सिर्फ चमत्कारों के माध्यम से नहीं आते। वे हमारी मदद करने के लिए अनेक माध्यमों से उपस्थित होते हैं – कभी किसी व्यक्ति के रूप में, कभी किसी अवसर के रूप में, तो कभी एक चेतावनी के रूप में। लेकिन यदि हम आंखें मूंदे रहें और हर बार किसी अलौकिक शक्ति के प्रकट होने की प्रतीक्षा करें, तो हम उन अवसरों को खो सकते हैं जो वास्तव में हमारी मदद करने आए होते हैं।

इसलिए सिर्फ ईश्वर पर भरोसा करना ही नहीं, बल्कि अपने प्रयास भी उतने ही ज़रूरी हैं। ईश्वर हमारी सहायता तभी करता है जब हम खुद अपने भाग्य को बदलने के लिए तैयार हों।

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